Naye saal me badlao ki traf naye kadam :-
नए साल में नई उम्मीदों के साथ साल की शुरूआत ने 2020 में लोगों की जिन्दगी में आए बड़े बदलावों को अभी भी जारी रखा है। किस तरह जिन्दगी की गाड़ी एक नए टै्रक पर आकर खड़ी हो गई और बदलावों का सिलसिला सा चल पड़ा। चाहे वो हमारी हैल्थ को लेकर हो, खान-पान में हो या हमारे काम को लेकर। दुनिया जिस तेजी से भाग रही थी उतनी ही तेजी से एक झटके में थम सी गई जिसका असर अब भी जारी है। हमारी सबसे बड़ी शिकायत अकसर उस समय को लेकर रही जो हम अपने परिवार को नहीं दे पाए जो हम खुद को नहीं दे पाए। जो छोटी-छोटी बातें जीवन का सबसे अहम हिस्सा होती है लोग उनसे दूर चले गए।
निराशा से भरे पिछले साल ने हमें ये सोचने पर तो जरूर मजबूर कर दिया है कि जीवन में सबसे जरूरी क्या है। जरूरते पूरी करने के लिए हम हैल्थ, फैमिली, रिलेशन्स सबसे किस तरह समझौता करते चले गए है। हमारी जरूरते इतनी नहीं है जितनी हम उन्हें बना चुके है। आज लेकिन हम वो डायलॉग जरूर समझ सकते है- ‘कि कितना भी करो जिन्दगी में कुछ न कुछ तो छूटेगा ही तो जहां है वहीं के मजे लेते है’। तभी तो लोगों ने महामारी के इस समय में इस बात को बहुत अच्छे तरीके से समझा भी है और अपनाया भी है। नए-नए तरीके से अपने बच्चों अपने परिवार के साथ खुद को व्यस्त रखा है।
ऐसा नहीं है कि पहली बार पूरे विश्व ने ऐसी किसी बीमारी का सामना किया है इससे पहले भी लोगो ने ऐसे वक्त का सामना किया है लेकिन तब टैकनालिजी इतनी ज्यादा बेहतर नहींं थी। तब सही मायनों मे लोग अपने घर पर कैद हो चुके थे। पर इसे हम अपनी खुशनसीबी समझे, कि हम ऐसे समय में है जहांँ मोबाइल, लैपटॅाप, वाटसएप ने हमें दुनिया से जोडे़ रखा है।
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भारतीय परम्परा भी हमें विश्व में देखने को मिली है। नमस्कार हमारी जीवनशैली का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। जहां बच्चों से लेकर बडे तक इससे अछूते नहीं है। वही जब ये बीमारी फैली, तो लोगों को हाथ मिलाने की बजाय हाथ जोड़कर मिलने पर जोर देने के लिए कहा गया। सोशल मीडिया पर रुक्वदजेांमींदक और रुछंउेंजम जैसे हैशटैग वायरल हुए जिसके चलते खुद भारतीय अपनी परम्परा की तरफ फिर से लौटे।
सबसे दिलचस्प रहा लोगों का इंटरनेट पर हाथ सही तरीके से कैसे धोएं जाएं सर्च करना। इस बीमारी के चलते हमारी साफ-सफाई की आदतां में काफी हद तक सुधार आया है। बदलाव की बात करें तो हमारे पहनावे में भी एक बड़ा बदलाव आया है जहां कभी हम एकदम तैयारी जैसे शर्ट-पैंट, जींस, कोर्ट जैसे आउटफीट के साथ बाहर जाना पंसद करते थे, वहीं अब उन्हीं आउटफीटस की जगह पायजामा-टीशर्ट जैसे कंफर्टेबल कपडों ने ले ली है।
इस डिजिटल युग में हम काफी हद तक जागरूक भी हुए है। डिजिटल प्लेटफॉर्म का सबसे बड़ा फायदा अब देखने को मिल रहा है। शायद यह हमारे लिए नया नहीं होता अगर हम पहले इसकी तरफ ध्यान दे चुके होते। लेकिन जिस तरह हम इस प्लेटफॅार्म का सही इस्तेमाल करना अब सीख रहे है उसका कारण है हमारी जरूरतें। चूंकि अब बच्चों का ज्यादातर समय घर पर ही बीतता है, तो डिजिटल प्लेटफॉर्म पैरेंटस के लिए एक बेहतर विकल्प के रूप में उभरा है। आने वाले समय में यह बदलाव कितना बरकरार रह सकता है ये देखने वाली बात होगी।
खान-पान की बात करें तो उसमें आयुर्वेद हमारे जीवन में फिर से वापस लौटता दिखा है। महामारी के समय में प्राकृतिक चीजों ने ही हमें सहारा दिया है। घर-घर में काढ़ा डेली लॉइफस्टाइल का अहम हिस्सा बन गया है। हालांकि, जो लोग अपनी सेहत को लेकर सजग रहते हैं वो पहले से ही इसका इस्तेमाल करते रहे हैं और कुछ हद तक हमारे बुजुर्ग भी इसके आदि रहे हैं। लेकिन नई पीढ़ी के बच्चे बर्गर, पिज्जा, कोक जैसे जंक फूड के साथ ही बड़े हुए उन्हें नहीं पता, कि आयुर्वेद का हमारे यहां क्या इतिहास रहा है। कैसे वो हमारी हैल्थ के लिए सबसे अच्छा इम्यूनिटि बूस्टर बन सकता है। इसमें शायद हमारी ही गलती है कि अपने समय की बचत करने के लिए हमने अपने बच्चों को कभी अपनी परम्पराओं से जुड़ने का मौका ही नहीं दिया या ये कहें कि वैस्टर्न कल्चर हमारे डेली लाइफस्टॅाइल का इतना अहम हिस्सा बन चुका है कि हम खुद इससे दूर होते चले गए हैं।
अक्सर कई चीजों का सही इस्तेमाल हमें वक्त के साथ ही पता चलता है। लेकिन ये वक्त ऐसे आएगा इसका अंदाजा शायद हमारे लिए लगा पाना थोड़ा मुश्किल था। अब जब धीरे- धीरे सब फिर से सही होता नजर आने लगा है, तब हम फिर से खुद को ना बदल ले ये हमें देखना होगा। नए साल की इस दस्तक के साथ, उम्मीद के साथ आगे बढ़ते हुए जिन्दगी को और बेहतर ढंग से जीने की कोशिश करते हैं।
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